हर व्यक्ति प्रेम चाहता है और यही गलत शुरुआत है
यह शारीरिक नहीं है; इसका नाता कहीं विश्रांति से है, पिघलने से है, पूरा मिट जाने से है। उन पलों में यह मिट जाता है अत: निश्चित ही यह शारीरिक नहीं। तुम्हें अधिक प्रेम देना सीखना होगा। यह केवल तुम्हारी समस्या नहीं है; थोड़ी या ज़्यादा, यह समस्या सभी की है।
एक बच्चा, एक छोटा बच्चा प्रेम नहीं कर सकता, कुछ कह नहीं सकता, कुछ कर नहीं सकता, कुछ दे नहीं सकता; बस ले सकता है। छोटे बच्चे का प्रेम का अनुभव केवल लेने का है: मां से, पिता से, बहनों से, भाइयों से, पड़ोसियों से, अजनबियों से-- बस लेने का अनुभव। तो पहला अनुभव जो उसके अचेतन तक पैठ जाता है वह प्रेम लेने का है। परंतु समस्या यह है कि हर व्यक्ति बच्चा रहा है और हर व्यक्ति के भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा है; कोई भी किसी अलग ढंग से पैदा नहीं हुआ है। तो सभी मांग रहे हैं,"हमें प्रेम दो" लेकिन देने वाला कोई भी नहीं क्योंकि वे भी उसी तरह पैदा हुए हैं। हमें सजग व सचेत रहना चाहिए कि हम जन्म की यह अवस्था हमारे पूरे जीवन पर आच्छादित न हो जाए।
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