गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010
बेशर्त प्रेम - भाग - 1
प्रेम और प्रेम में बहुत भेद है, क्योंकि प्रेम बहुत तलों पर अभिव्यक्त हो सकता है। जब प्रेम अपने शुद्धतम रूप में प्रकट होता है--अकारण, बेशर्त--तब मंदिर बन जाता है। और जब प्रेम अपने अशुद्धतम रूप में प्रकट होता है, वासना की भांति, शोषण और हिंसा की भांति,र् ईष्या-द्वेष की भांति, आधिपत्य, पजेशन की भांति, तब कारागृह बन जाता है।
कारागृह का अर्थ है: जिससे तुम बाहर होना चाहो और हो न सको। कारागृह का अर्थ है: जो तुम्हारे व्यक्तित्व पर सब तरफ से बंधन की भांति बोझिल हो जाए, जो तुम्हें विकास न दे, छाती पर पत्थर की तरह लटक जाए और तुम्हें डुबाए। कारागृह का अर्थ है: जिसके भीतर तुम तड़फड़ाओ मुक्त होने के लिए और मुक्त न हो सको; द्वार बंद हों, हाथ-पैरों पर जंजीरें पड़ी हों, पंख काट दिए गए हों। कारागृह का अर्थ है: जिसके ऊपर और जिससे पार जाने का उपाय न सूझे
आगे पढ़े .............. यहाँ क्लिक करे
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें