रविवार, 24 अक्तूबर 2010
एक नई धार्मिकता की शुरुआत
पढ़े क्लिक करे क्लिक भांति कार्य करता है। वह तुम्हारा हाथ पकड कर तुम्हें ठीक मार्ग पर ले जाता है। तुम्हारी आंखें खोलने में तुम्हारी सहायता करता है, और वह तुम्हें मन के पार जाने में सहायता देता है। तभी तुम्हारी तीसरी आंख खुलती है, तब तुम अपने अंदर देखना शुरू करते हो। एक बार तुम अपने अंदर देखने लगते हो, फिर सदगुरु का कार्य समाप्त हो जाता है। अब यह तुम पर ही निर्भर करता है।
तुम अपने मन और अमन के छोटे से अंतराल को एक क्षण में अत्यंत तीव्रता से और शीघ्रता से लांघ सकते हो। या आगे तुम बहुत धीमे-धीमे, झिझकते और रुकते हुए यात्रा कर सकते हो, इस बात से डरते हुए कि तुम अपने मन पर और अपनी निजता पर अपनी पकड खोते जा रहे हो, और कि सभी सीमाएं खोती जा रही हैं। तुम क्या कर रहे हो? तुम क्षण भर के लिए यह सोच सकते हो कि इससे सब कुच समाप्त हो सकता है या तुम फिर मन में वापस लौटने में समर्थ न हो सकोगे। और कौन जानता है कि आगे क्या होने जा रहा है? सब कुछ विलुप्त होते जा रहा है ॥
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