शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

ओशो या महाविनाश


यदि आपसे कहा जाए कि ईसा मसीहवहाँ गए थे जहाँ ओशो का जन्म होनेवाला था तब शायद आप विश्वास नहींकरेंगे। लेकिन इस बात के सबूत हैं।आपसे यह कहा जाए कि ओशो केछुटपन से ही हरिप्रसाद चौरसियाउनके समक्ष बाँसुरी बजाते थे, तबशायद आप मान भी जाएँ। यह भी कि युवा ओशो को देखकर जवाहरलालनेहरु की आँखों में आँसू गए थे। क्या आप जानते है कि एक 10-12 साल का बच्चा महात्मा गाँधी के हाथ से दानपात्र छीनकर यह कहे कि इसकी जरूरत मेरे गाँव को ज्यादा है। क्या 14 साल का बालक भरी बारसात में सैकड़ों फुट गहरी और उफनती नर्मदा में कूदकर मिलों पार जा सकता है? जिन्होंने नर्मदा का उफान देखा है, वे जानते हैं कि इसमें सिर्फ वही कूदता है, जिसने मरने की ठान ली हो।

स्कूल में दाखिल होते समय उन्होंने अपने पिता से कहा था कि इस जेल में भर्ती कर रहे हैं आप मुझे? मैं 'नहीं' भर्ती होना चाहता। नहीं। लेकिन उन्हें घसीटकर स्कूल में ले जाया गया। स्कूल में दाखिल हुए तो 'काना मास्टर' को पहले ही दिन स्कूल छोड़ना पड़ा। वह मास्टर जो बच्चों को बेहद निर्मम तरीके से मारकर पढ़ाता था।

ओशो जब सागर युनिवर्सिटी से बाहर हो रहे थे तब उनके प्रोफेसर ने कहा था कि इस युनिवर्सिटी को छोड़कर मत जाओ, तुम्हारे जैसे होनहार की जरूरत है। अभी तुम्हें पीएचडी करना है। ओशो ने कहा था- माफ करना 'नहीं' बहुत रह लिया इन जेलों में। दोनों ही वक्त वे बड़े से दरवाजे पर खड़े थे। आमतौर पर पहले स्कूल और कॉलेजों के बड़े से दरवाजे जेल जैसे हुआ करते थे।


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