रविवार, 24 अक्तूबर 2010

जो है वह मिट नहीं सकता


परमात्मा पर एक छलांग और लगानी पड़ेगी, वहां तर्क सारा तोड़ देना पड़ेगा। परमात्मा यानी अस्तित्व, जो है। सिर्फ है। इज़नेस, होना जिसका गुण है। हम कुछ भी करें, उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ता। इसे वैज्ञानिक किसी और ढंग से कहते हैं। वे कहते हैं, हम किसी चीज को नष्ट नहीं कर सकते। इसका मतलब हुआ कि हम किसी चीज को है-पन के बाहर नहीं निकाल सकते। अगर हम एक कोयले के टुकड़े को मिटाना चाहें, तो हम राख बना लेंगे। लेकिन राख रहेगी। हम उसे चाहे सागर में फेंक दें-वह पानी में घुलकर डूब जाएगी, दिखाई नहीं पड़ेगी, लेकिन रहेगी। हम सब कुछ मिटा सकते हैं, लेकिन उसकी इज़नेस, उसके होने को नहीं मिटा सकते। उसका होना कायम रहेगा। हम कुछ भी करते चले जाएं, उसके होने में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। होना बाकी रहेगा। हां, होने को हम शकल दे सकते हैं। हम हजार शकलें दे सकते हैं। हम नए-नए रूप और आकार दे सकते हैं। हम आकार बदल सकते हैं, लेकिन जो है उसके भीतर, उसे हम नहीं बदल सकते। वह रहेगा।


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