शनिवार, 23 अक्तूबर 2010
नैतिकता का जाल
कनफ्यूशियस कुछ दिनों के लिए एक दफा मजिस्ट्रेट हो गया था। ज्यादा दिन नहीं रह सका। क्योंकि अच्छा आदमी मजिस्ट्रेट ज्यादा दिन नहीं रह सकता। मजिस्ट्रेट ज्यादा दिन वही रह सकता है जिसके पास कोई आत्मा न हो। कनफ्यूशियस मजिस्ट्रेट हो गया था, उसके पास आत्मा थी इसलिए पहले मुकदमे में ही सब गड़बड़ हो गई बात। दूसरा मुकदमा उसके सामने नहीं लाया जा सका, क्योंकि वह निकाल बाहर कर दिया गया।
मुकदमा आ गया था, एक साहूकार, जो उसके गांव का सबसे बड़ा साहूकार था, उसकी चोरी हो गई थी। कनफ्यूशियस के सामने मुकदमा आया। चोर पकड़ लिया गया था। चोरी में गई चीजें पकड़ ली गई थीं। मामला साफ था। सजा देनी चाहिए थी। कनफ्यूशियस ने सजा दी। लेकिन दोनों को सजा दे दी, साहूकार को भी और चोर को भी। छह-छह महीने की सजा दे दी।
साहूकार चिल्लाया कि मजाक करते हैं, किस कानून में लिखा है यह? और यह क्या पागलपन है, मुझे सजा देते हैं? कनफ्यूशियस ने कहा: तुम न होते तो यह चोर भी नहीं हो सकता था। तुम हो इसलिए यह चोर है। चोर बाई-प्रोडक्ट है। चोर तुम्हारी पैदाइश है। यह तुम्हारा पुत्र है चोर। तुम बाप हो, यह बेटा है। तुमने सारे गांव की संपत्ति इकट्ठी कर ली, चोरी नहीं होगी तो क्या होगा? सारे गांव की संपत्ति इकट्ठी हो गई एक तरफ, सारा गांव कंगाल हो गया, चोरी नहीं होगी तो क्या होगा? इस चोर का कसूर ज्यादा नहीं है, पूरा गांव चोर हो जाएगा धीरे-धीरे।
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